“ध्यानमूलं गुरु मूर्ति, पूजा मूलं गुरु पदम्। मंत्र मूलं गुरु वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरु कृपा॥”
ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा का मूल गुरु के चरण हैं, मंत्र का मूल गुरु का वाक्य है, और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है। यह श्लोक गुरु के महत्व को बताता है, कि गुरु का ध्यान, गुरु के चरणों की पूजा, गुरु के वचन ही मंत्र और गुरु की कृपा ही मुक्ति का मुख्य साधन है।

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